09 July, 2009

मेरा पहला शेर

आदाब दोस्तों!

इससे पहले के आप मेरी शायरी पढे, क्या आप नहीं जानना चाहेंगे की मेरी शायरी की शुरुआत कैसे हुई?
अच्छा ठिक हैं... बताता हूँ...

वैसे मुझे लिखने का शौक बचपन से ही रहा हैं. स्कूल में मुझे खत या निबंध लिखना बहोत अच्छा लगता था. मैं अपना होमवर्क खत्म करके अपने दोस्तों के लिए भी ये सब लिखा करता था. खैर, उस वक्त ये चाहत सिर्फ खत या निबंध लिखने तक ही सीमीत थी. कविताएँ या शेरोशायरी इन सबसे मैं काफी दूर ही था. सच कहूँ तो कुछ समझ में ही नही आता था. और बहोत बोरींग लगता था. लेकिन बाद में कॉलेज के जमाने में एक किस्सा हुआ और तबसे मेरी शायरी की शुरुआत हुई.

अरे रुकिये जनाब, इतनी जल्दी कोई अनुमान मत लगाईये. किसी फिल्मी कहानी की तरह मेरी शायरी की शुरुआत किसीके प्यार में डूबकर नहीं हुई. मेरी कहानी थोडी अलग हैं...

तो हुआ यूँ की एक बार हम लोग (यानी की मैं और मेरे दोस्त) कॉलेजमें लेक्चर के बाद एक क्लासरुम में बैठे थे. वहापर हमें बेंच के नीचे एक डायरी मिली. दीपा नाम के किसी लडकी की वो डायरी थी. उसमें कई सारे शेर लिखे हुए थे - कुछ खुद दीपा ने लिखे हुए और कुछ औरो के भी. तो वो डायरी लौटाने के लिये हमने उसे ढुँढने की बहोत कोशीश की. लेकिन वो डायरी किसकी थी इसका कोई पता नहीं चला. कुछ दिनों बाद हम सब दोस्तों ने मिलके उस डायरी में लिखे शेर साथ में बैठकर पढे और एक एक शेर को लेकर खूब हसीं-मजाक और मस्ती की. आम तौर पर कॉलेज के दिनों में जिस प्रकार एक दुसरे की खिंचाई की जाती हैं वो सबकुछ इस डायरी को लेकर हुआ.

बाद में कुछ दिन वो डायरी मैंने अपने पास रखी थी. वो शेर मैंने कई बार पढे और मुझे वो पसंद भी आने लगे. जब भी मैं वो शेर पढता था तो मुझे लगता था की क्यूँ न मैं भी कुछ लिखू? फिर बहोत कोशीश के बाद और इधर उधर से शब्दोंको किसी तरीके से साथ में बांधकर मैंने अपना पहला शेर लिखा. काफी मजेदार शेर था वो... एकदम फिल्मी स्टाईल... पढना चाहोगे? तो ये लीजिये...

सलाम आपकी खिदमत में करता हूँ पेश
भूलना मत कभी, मेरा नाम हैं योगेश

हैं ना एकदम मजेदार शेर? तो ये शेर मैंने अपने दोस्तों को सुनाया और उन्होने भी इसे खूब सराहा. फिर तो कुछ पुछिये ही मत... मैं बस लिखता ही गया. शुरु शुरु में लिखे हुए कई शेर बहोतही बेमानी थे. आज जब मैं उन्हें फिरसे पढता हूँ तब ये समझ में आता हैं और हँसी भी आती हैं. लेकिन आज जब मैं ये सोचता हूँ की अगर उस वक्त मेरे दोस्तोंने मेरी कोशीश को सराहा न होता तो शायद मैं आगे कभी न लिखता. मैं अपने उन सभी दोस्तों का तहे-दिल से शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने मुझे लिखते रहने की प्रेरणा दी.

आगे चलके धीरे धीरे मेरी शायरी में थोडा वजन भी आ गया. लेकिन आज भी मेरे शेर या गझलें पुरी तरह व्याकरण की कसौटी पर खरे उतर सकेंगे ये बात मैं यकीन के साथ नहीं कह सकता. उस मोड तक पहुँचने में शायद मुझे अभी कुछ देर हैं. फिर भी मैं यही कहना चाहूंगा.

यूँ ही बहती हैं ये जिंदगी, यूँ ही बहती रहेगी
मेरी शायरी इसके किस्से यूँ ही कहती रहेगी


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दोस्तों मेरी शायरी आपने पढ़ी। इसके बारे में आपकी क्या राय हैं ये जानने की चाहत रखता हूँ। आपकी टिका टिपण्णी मेरे जरुर काम आएगी। कृपया ये पेज क्लोज करने से पहले कुछ कॉमेंट जरुर छोडे।

1 comment:

  1. bahot khoob miyan.. aap to dheere dheere poore shayar ho gaye hai....
    sab theek thaak to hai... ?

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