आदाब दोस्तों,
फिर एक बार हाजिर हुआ हुं आपके सामने मेरी एक गजल लेकर। ये गजल मेरी लिखी हुई सबसे पहली गजल हैं। ये गजल मैंने तब लिखी थी जब सन २००२ में गोध्रा में वो अमानुष हत्याकांड हुआ था जिसने इंसानियत पर कई सवाल खड़े कर दिए थे। उस घटना ने मेरे दिल पर काफी गहरा असर किया था। और उसी अवस्था में मैंने ये गजल लिखी थी। गजल का शीर्षक है "आतंक"।
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आ ऐ दोस्त आज तू भी मेरे साथ कुछ आँसू बहा ले
मेरे आँसू शायद कम पड जाए ये आग बुझाने के लिये
हर गली हर रस्ते पे अपनोंके ही खून के धब्बे हैं
हाथ किसके साफ हैं धरती के ये दाग मिटाने के लिये
जिस्म छलनी, रुह बेचैन और आँखोंमें सैलाब भी हैं
कोई फरिश्ता भी नहीं हैं दिल का ये बोझ हटाने के लिये
आज इन्सान ही इन्सान का दुश्मन बन बैठा हैं यहाँ
हाथ कोई बचा ही नहीं अब दुवा मे उठाने के लिये
अब तो हमें ही कुछ कदम उठाना होगा ऐ दोस्तों
टुटे हुए इन दिलोंमें फिरसे वो हिम्मत जुटाने के लिये
-योगेश
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दोस्तों इस गजल के बारे में आपकी क्या राय हैं ये जानने की चाहत रखता हूँ। आपकी टिका टिपण्णी मेरे जरुर काम आएगी। कृपया ये पेज क्लोज करने से पहले कुछ कॉमेंट जरुर छोडे
09 July, 2009
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