10 June, 2011

दिल्लगी

ये दिल की लगी हैं, इसे दिल्लगी क्यूँ कहते हो
दिल के इतने करीब आकर भी, हमसे दूर क्यूँ रहते हो

-योगेश ’अर्श’

04 June, 2011

बदनाम


रहते थे कभी दिलमें तेरे हम एक गुलफाम की तरह
बैठे हैं तेरी महफिल में आज हम किसी आम की तरह

मैं तुझे भुला ना पाऊँ शायद उम्रभर लेकिन
भुला दे तू मुझे, बिगडे हुए किसी काम की तरह

देख तेरे हाथ कही हो ना जाये घायल इनसे
ना उठा मेरे दिल के टुकडे, टुटे हुए जाम की तरह

जिंदगी का क्या हैं ये तो कट जायेगी युँ ही
आहिस्ता आहिस्ता, ढलती हुई शाम की तरह

मुझे याद करने से बस दर्द ही नसीब होगा तुझे
मिटा दे मेरी याद को, रेत पे लिखे नाम की तरह

ये सच हैं शायद के मैं तेरे काबिल ही नही हुँ
ठुकरा दे तू भी मुझे, झुठे किसी इल्जाम की तरह

संभाल के रक्खा हैं मैने बडी जतन से जिनको
मेरा हर गम हैं तेरे दिए हुए इनाम की तरह

तुने भी ना अपना कभी समझा मुझे भुलकर
ठुकराया हैं दुनियाने भी मुझे किसी नाकाम की तरह

तेरी महफिल से उठके जाता भी तो कहा ’अर्श’
मुँह छुपाये फिरता हैं अब किसी बदनाम की तरह


-योगेश ’अर्श’