tag:blogger.com,1999:blog-14954992903080030232024-03-18T17:42:22.634+05:30अंजुमन-ए-अर्शUnknownnoreply@blogger.comBlogger20125tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-47839224305515013712017-09-27T11:30:00.003+05:302017-09-27T11:33:26.169+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
ऐसा नहीं के तुझसे मुहोब्बत नहीं<br />
युँ भी नहीं के तेरी जरुरत नहीं<br />
लेकिन तेरी हर बात पे सर झुका दूं<br />
मेरे दिल को इसकी आदत नहीं<br />
<br />
<b>~योगेश 'अर्श'</b></div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-25325310700375031492017-06-19T12:06:00.000+05:302017-06-19T12:07:23.925+05:30<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
मुझे उसकी, उसे मेरी कोई खबर नही<br />
हमराह है वो मेरा मगर हमसफर नही<br />
<br />
योगेश 'अर्श'</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-32388592644696475052017-06-19T11:37:00.001+05:302017-06-19T12:05:01.042+05:30बारीश<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
नए मौसम की पहली बारिश हुई है आज<br />
फिर उनसे मिलने की ख्वाहिश हुई है आज<br />
<br />
यूँही कुरेदकर पुराने जख्मों को फिरसे<br />
खुदको रुलाने की साजिश हुई हैं आज<br />
<br />
ना नाम जुबां पे आया, ना आँख से आँसू बहे<br />
यूँ भी मेरे इश्क़ की आजमाईश हुई है आज<br />
<br />
दिलकी हसरतों को जाहिर जो किया हमने<br />
तो खुलके नफरतों की नुमाईश हुई है आज<br />
<br />
क्या क्या सोचा था की कहेंगे उनसे मगर<br />
हमसे चुप रहने की गुजारिश हुई है आज<br />
<br />
मेरे इश्कमे ज्यादा असर है या नफरतों में तेरी<br />
फिरसे ये आजमाने की कोशिश हुई है आज<br />
<br />
योगेश 'अर्श'</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-77679354020821469242011-06-10T12:19:00.000+05:302011-06-10T12:19:37.115+05:30दिल्लगी<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">ये दिल की लगी हैं, इसे दिल्लगी क्यूँ कहते हो<br />
दिल के इतने करीब आकर भी, हमसे दूर क्यूँ रहते हो<br />
<hr />-योगेश ’अर्श’</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-62940514494746617922011-06-04T11:55:00.000+05:302011-06-04T11:55:40.206+05:30बदनाम<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
रहते थे कभी दिलमें तेरे हम एक गुलफाम की तरह<br />
बैठे हैं तेरी महफिल में आज हम किसी आम की तरह<br />
<br />
मैं तुझे भुला ना पाऊँ शायद उम्रभर लेकिन<br />
भुला दे तू मुझे, बिगडे हुए किसी काम की तरह<br />
<br />
देख तेरे हाथ कही हो ना जाये घायल इनसे<br />
ना उठा मेरे दिल के टुकडे, टुटे हुए जाम की तरह<br />
<br />
जिंदगी का क्या हैं ये तो कट जायेगी युँ ही<br />
आहिस्ता आहिस्ता, ढलती हुई शाम की तरह<br />
<br />
मुझे याद करने से बस दर्द ही नसीब होगा तुझे<br />
मिटा दे मेरी याद को, रेत पे लिखे नाम की तरह<br />
<br />
ये सच हैं शायद के मैं तेरे काबिल ही नही हुँ<br />
ठुकरा दे तू भी मुझे, झुठे किसी इल्जाम की तरह<br />
<br />
संभाल के रक्खा हैं मैने बडी जतन से जिनको<br />
मेरा हर गम हैं तेरे दिए हुए इनाम की तरह<br />
<br />
तुने भी ना अपना कभी समझा मुझे भुलकर<br />
ठुकराया हैं दुनियाने भी मुझे किसी नाकाम की तरह<br />
<br />
तेरी महफिल से उठके जाता भी तो कहा ’अर्श’<br />
मुँह छुपाये फिरता हैं अब किसी बदनाम की तरह<br />
<br />
<hr />-योगेश ’अर्श’</div>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-75561961479282843502010-08-15T20:25:00.000+05:302010-08-15T20:25:51.984+05:30वो भी हमसे प्यार करें, ये जरुरी तो नहीं<br />
होके जुदा जी ना पाये, ऐसी मजबूरी तो नहीं<br />
माना के प्यार जिंदगी की जरुरत हैं मगर<br />
जरुरत ये कोई आखरी तो नहीं<br />
<br />
--योगेश ’अर्श’Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-43054590236966675252010-08-12T10:09:00.000+05:302010-08-12T10:09:01.987+05:30रातभर सर्द हवा चलती रही<br />
तेरी फुर्कत ने रातभर रुलाया हमें<br />
मोम होते तो कब के पिघल जाते<br />
चरागोंसा तेरी याद ने जलाया हमें<br />
<br />
--योगेश ’अर्श’Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-92058447091574106272009-11-17T12:54:00.000+05:302009-11-17T12:54:50.177+05:30इस दीवाने दिल की हसरत क्या है...<span style="color: #ffe599;">इस दीवाने दिल की हसरत क्या हैं</span><br />
<span style="color: #ffe599;">हमें आपकी ऐसी जरुरत क्या हैं</span><br />
<span style="color: #ffe599;">कभी इस दिल में उतरकर देखिये जनाब</span><br />
<span style="color: #ffe599;">आखिर ये जज्बा-ए-मुहब्बत क्या हैं</span><br />
<br />
-<span style="font-size: x-small;">योगेश ’अर्श’</span>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-83551583603785294762009-10-29T10:28:00.001+05:302009-10-29T10:29:47.794+05:30इस दिल की हर धडकन में तुम हो...<span style="color: #fce5cd;">इस दिल की हर धडकन में तुम हो</span><br />
<span style="color: #fce5cd;">मेरी हर साँस की सरगम में तुम हो</span><br />
<span style="color: #fce5cd;">इस कदर समा गई हो तुम मुझमें</span><br />
<span style="color: #fce5cd;">कि हर खुशी, और हर गम में तुम हो</span><br />
<br />
-<span style="font-size: small;">योगेश 'अर्श'</span>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-54440096481372922682009-10-09T16:22:00.000+05:302009-10-09T16:22:40.673+05:30कितना हसीं ये एहसास है<span style="color: #d5a6bd;">कितना हसीं ये एहसास है</span><br />
<span style="color: #d5a6bd;">के तू मेरे दिल के पास है</span><br />
<span style="color: #d5a6bd;">तेरे ही नाम की हर धड़कन</span><br />
<span style="color: #d5a6bd;">तेरे ही नाम की हर सास है</span><br />
<br />
-योगेश 'अर्श'Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-49575410878833291832009-09-10T22:49:00.004+05:302009-09-10T22:58:52.922+05:30इंतजार<span style="color:#ffcc99;">युँ भी अपने दिलको खुश कर लेते हैं हम<br />बातें उनकी तस्वीर से ही कर लेते हैं हम<br /><br />एक ना एक दिन वो आयेंगे मिलने हमसे<br />इसी उम्मीद पे इंतजार कर लेते हैं हम<br /><br />हर वादा टुटा मेरे दिल की तरह फिर भी<br />हर वादे पे उनके यकीं कर लेते हैं हम<br /><br />पता हैं हमें हासिल कुछ नहीं होगा लेकिन<br />कभी युँ ही खुदा से फर्याद कर लेते हैं हम<br /><br />हर दर्द की दवा की जाये ये जरुरी तो नहीं<br />दर्द ही को जिंदगी की दवा कर लेते हैं हम<br /><br />कई बातें हैं जिन्हें कहने नहीं पाती ये जुबाँ<br />उन बातों को अश्कों से बयाँ कर लेते हैं हम<br /><br />अपनी जिंदगी में फुल कहा से आयेंगे भला<br />इसीलिये काँटोंसे ही दोस्ती कर लेते हैं हम<br /><br />अब वो चाहे मिटा दे हमें या फिरसे बना दें<br />उन्हीं को इस दिल का खुदा कर लेते हैं हम<br /><br />फिर जनम लेके हम फिर उन्हें चाहें ’अर्श’<br />मरने से पहले ये दुवा कर लेते हैं हम</span><br /><br />-योगेश 'अर्श'Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-3983047583689341392009-08-26T09:58:00.001+05:302009-08-26T09:59:49.671+05:30ऐ काश के दिल हमारा पत्थर होता<span style="color:#ffcc99;">ऐ काश के दिल हमारा पत्थर होता<br />किसी बात का ना इसपे असर होता<br /><br />जी लेते एक जिंदा लाश की तर्हा फिर<br />जिंदगी का खौफ, ना मौत का डर होता<br /><br />हँसकर पी लेते ये जहर का प्याला<br />पता तेरा इरादा हमें अगर होता<br /><br />क़ातिल का पता चल जाता दुनिया को<br />जो लाश के पास मिला वो खंजर होता<br /><br />हमसफर होता जहाँ में कोई मेरा<br />फिर आसान कुछ तो ये सफर होता<br /><br />पा लेता प्यार इस दुनिया में किसीका<br />ना होता दुनिया में ’अर्श’ मगर होता</span><br /><span style="color:#ffcc99;"></span><br /><span style="color:#ffcc99;">-योगेश 'अर्श'</span>Unknownnoreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-3100602980325033822009-08-11T16:04:00.002+05:302009-08-15T11:04:51.699+05:30फिर भी ये दिल दुआ तुझको देता हैं<p>दोस्तो, इस दुनिया में प्यार करनेवालों की कमी नहीं हैं। लेकिन सच्चे प्यार का मतलब कितने लोग जानते हैं ये एक सोचनेवाली बात हैं। ऐसे कई लोग हैं जो सिर्फ बाहरी आकर्षण को ही प्यार समझ बैठते हैं। और ऐसे भी हैं जो अपने व्यक्तिगत स्वार्थ को ही प्यार का नाम दे देते हैं। लेकिन खुशी की बात ये हैं की आज भी दुनिया में ऐसे लोग हैं जो प्यार के लिये अपना सबकुछ लुटा सकते हैं। उनके लिये उनका प्यार ही उनका जीवन होता हैं। ऐसे इन्सान अगर प्यार में धोखा भी खाते हैं तो अपने मेहबूब से कोई शिकवा नहीं करते। उलटे उसके लिये भी दुवायें ही मांगते हैं। लिजीये आपके सामने पेश कर रहा हूँ एक ऐसा ही शेर जो प्यार में धोखा खाये हुए एक आशिक की इसी मानसिकता को दर्शाता हैं। उम्मीद करता हूँ की आपको मेरा ये शेर पसंद आयेगा।</p><p><span style="color:#ffcc99;"><span>जानता</span> हूँ की लौटके अब तू आयेगी नहीं<br />फिर भी ये दिल सदा तुझको देता हैं<br />इस दिल का हर जख़्म तेरी ही बदौलत<br />फिर भी ये दिल दुआ तुझको देता हैं</span></p><p>-योगेश ’अर्श’</p>Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-82542238484902078482009-08-02T09:40:00.004+05:302009-08-15T11:03:53.944+05:30दोस्ती - Happy Friendship Day!!दोस्तो,<br /><br />कल Friendship Day था। इस मौके पर लिजीये एक गज़ल पेश कर रहा हूँ। उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आयेगी।<br /><br />- - 0 - - 0 - - 0 - -<br /><br /><span style="color:#ffcc99;">दोस्त बनकर आये हो तुम जबसे मेरे जीवन में<br />हर तरफ हैं पायी मैंने खुशीयाँ अपने जीवन में<br /><br />ये हँसता हुवा चेहरा मेरा, तेरी ही तो देन हैं दोस्त<br />यही खयाल आया जब भी देखा मैंने दर्पन में<br /><br />तोहफा हैं अनमोल ये सबसे दोस्ती तेरी मेरे लिये<br />जीवनभर युँही बंधे रहना दोस्ती के इस बंधन में<br /><br />ऐ दोस्त तेरे साथ रहकर मिलता हैं युँ सुकून मुझे<br />माँ की गोद में सोता हैं जैसे बच्चा कोई बचपन में<br /><br />खुद ही एक गजल बना हैं जीवन मेरा तुमसे मिलकर<br />करता हुँ हर शेर मैं इसका आज तुम्हारी अर्पन में </span><br /><br />-योगेश ’अर्श’Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-77485537036982776002009-07-22T11:10:00.004+05:302009-08-15T11:03:02.177+05:30वो मिलती हैं तसव्वूर में इस तरह...दोस्तो,<br /><br />प्यार में इंतजार का मजा कुछ और ही होता हैं। खास करके जब बहोत ज्यादा इंतजार के बाद मुलाकात होती हैं तब वो मुलाकात भी काफी रंग लाती है। कभी कभी तो ऐसा भी होता हैं की इंतजार ही इंतजार में आशिक अपनी मेह्बूबा से अपने ख्वाबों में ही मुलाकात कर बैठता हैं। लिजीये आपके सामने पेश कर रहा हूं एक ऐसा ही शेर जिसमें शायर उसकी मेहबूबा से अपने ख्वाबों में होती हुई मुलाकातों के सिलसिलों के बारे में, अपने दोस्तों से जिक्र कर रहा हैं। अर्ज किया हैं -<br /><br /><span style="color:#ffcc99;">वो मिलती हैं तसव्वूर में इस तरह<br />जैसे रात में फूलों पे गिरती हैं शबनम<br />जैसे शमा से मिलते हैं मासूम परवाने<br />जैसे दिल की साज पे छेडे कोई सरगम<br /></span><br /><span style="font-size:85%;">-योगेश 'अर्श'</span>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-70398056794102118972009-07-18T10:07:00.004+05:302009-08-15T11:01:40.485+05:30आजमाईशदोस्तो,<br />आज मैं आपके लिये एक ताजातरीन शेर लेकर आया हूं। इसे मैने अभी कुछ दिनों पहले ही लिखा हैं। उस दिन इस मौसम की पहली बारीश हो रही थी। ऐसे में दिल में कुछ पुरानी यादें ताजा हुई। कुछ सोये हुए दर्द, जिन्हें दिल ने बडी कोशीशोंके बाद भुला दिया था, वो फिर से जाग गये। ऐसेमें भला मेरे अंदर का शायर कैसे चूप रह सकता था!<br /><br />अर्ज किया हैं-<br /><br /><span style="color:#ffcc99;">ऐ बेरहम, तेरी बेवजह आजमाईश में<br />कही मर ना जाऊँ तुझको पाने की ख्वाहिश में<br />चंद बूँदो के लिये ना तरसा अपने ’अर्श’ को<br />तेरी मुहब्बत की मुसलसल सी बारीश में<br /></span><br />इस शेर की खुबसूरती ये हैं की ये शेर अपने मेहबूब के लिये भी कहा जा सकता हैं और खुदा के लिये भी। गौर किजीयेगा- एक बंदा अपने खुदा से ये फर्याद कर रहा हैं की ऐ खुदा, मुझे पता हैं की तू मुझे इतना ग़म सिर्फ मुझे आजमाने के लिये ही दे रहा हैं। लेकिन तेरी ये आजमाईश सच कहू तो बेवजह ही हैं। क्यूंकी तू तो सबकुछ जानता हैं। तुझे ये भी मालूम हैं की मैं तेरी ही इबादत करता हूँ। वैसे तो तू अपने सभी बंदो से बहोत ज्यादा मुहब्बत करता हैं ये मुझे भी पता हैं। और तेरी मुहब्बत भी ऐसी हैं जैसे लगातार, बिना रुके गिरने वाली बारीश। फिर मुझे ही अपनी मुहब्बत के लिये इतना क्यूं तरसा रहा हैं? मुझपे अपनी रहम नजर कब करेगा मेरे खुदा? कही तेरी इस आजमाईश में एक दिन मेरी जान ही न चली जाएँ।<br /><br />अब देखिये की अगर ये ही शेर अपने मेहबूब के लिये कहा जाये तो किन हालात में कहा जा सकता हैं। एक आशिक हैं जो अपनी मेहबूबा से दिलो-जान से मुहब्बत करता हैं। सिर्फ उसीको पाने की ख्वाहिश लिये वो जी रहा हैं। लेकिन उसकी मेहबूबा हैं की उसे अपने आशिक की चाहत पर यकीन नहीं हो रहा हैं। वो उसे हर तरह से आजमा रही है। इस तरह बार बार आजमाएँ जाने पर आशिक अपनी मेहबूबा से सवाल करता हैं की ऐ बेरहम, क्या तुझे मुझपे जरा भी रहम नहीं आता? इतना आजमाने पर भी अभी तक तुझे मेरी मुहब्बत पर यकीन क्यूं नही आता? तू मुझे चाहे कितना भी आजमा ले, लेकिन मेरी ये चाहत जरा भी कम नहीं होगी। लेकिन इस बात का भी खयाल रखना की तेरी इस बेवजह आजमाईश में कही मेरी जान ही न चली जाए। मैं जानता हूं की तू भी मुझसे उतनी ही मुहब्बत करती हैं। वर्ना इस तरह से मुझे बार बार ना आजमाती। अगर सच में तुझे मुझसे इतनी मुहब्बत हैं तो फिर अपनी मुहब्बत के लिये मुझे अब और ना तरसा।<br /><br /><span style="font-size:85%;">-योगेश ’अर्श’</span>Unknownnoreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-70113738658889838692009-07-15T10:09:00.006+05:302009-08-15T11:00:29.048+05:30एक गज़ल हैं जैसे जिंदगी मेरीदोस्तों,<br /><br />आज जो शेर मैं आपके सामने पेश करने जा रहा हूँ वो मेरे अपने सबसे पसंदीदा शेरों में से एक हैं। जरा गौर फरमाईएगा...<br /><br /><span style="color:#ffcc99;">एक गज़ल हैं जैसे जिंदगी मेरी<br />हर ग़म जैसे एक शेर<br />क्यूं ना खुबसूरत हो ये गज़ल<br />हर शेर में जीक्र तेरा जो हैं<br /></span><br />इस शेर में शायर की कल्पना ये हैं की उसकी जो जिंदगी हैं उसमे कई सारे ग़म हैं। लेकिन उसे इन ग़मों के होने से जरा भी शिकायत नहीं हैं। उल्टा उसे इन ग़मों से प्यार ही हैं। और उसकी वजह ये हैं की उसका हर एक ग़म उस की मेहबूबा की ही देन हैं। उसका हर एक ग़म उसकी मेहबूबासे ही जुडा हुआ हैं। शायर की कल्पना की नजाकत देखिये। उसकी मेहबूबा ने उसका दिल तोड़ दिया है। वो अभी ग़मज़दा है। फिर भी उसे अपनी मेहबूबा से कोई शिकायत नहीं हैं। उसकी चाहत की ये हद हैं की उसकी मेहबूबा के दिए हुए ग़म से भी उसे प्यार ही हैं.<br /><br /><strong>-योगेश 'अर्श'</strong>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-80713180361638510632009-07-10T10:11:00.007+05:302009-08-15T10:59:41.282+05:30दिल्लगीदोस्तो,<br /><br />प्यार में दो प्रेमीयों के बीच हँसी-मजाक तो चलता ही रहता हैं। फिर उसमे हल्कीसी छेडखानी, रुठना, मनाना सबकुछ होता हैं। सच पुछिये तो इन सब चीजोंसे प्यार की रंगत और बढती ही हैं। और गहराई भी। लेकिन कभी कभी ये दिल्लगी थोडी ज्यादा भी हो सकती हैं जिसकी वजह से मेहबूब की आँखोंमें अश्क भी छलक सकते हैं। अगर कभी ऐसा हो गया तो फिर पुछिये ही मत। अपने रुठे हुए मेहबूब को मनाते मनाते बेचारे आशिक का हाल बेहाल भी हो सकता हैं। आशिक ये समझ नहीं पाता की उसने जाने-अन्जाने में ऐसा क्या कह दिया जिसकी वजह से उसकी मेहबूबा की आँखों में आँसू भर आए। और वो उससे सवाल करता हैं...<br /><br /><span style="color:#66ffff;"><span style="color:#ffcc99;">पहले तो बेझिझक नजरें मिला ली<br />फिर क्यु शर्म से तुम्हारी आँखे झुक गई<br />हमने तो बस जरासी दिल्लगी की थी<br />फिर क्यु अश्कों से तुम्हारी आँखे भर गयी<br /></span><br /></span>-योगेश 'अर्श'<br /><br /><span style="font-size:85%;">दोस्तो, आपको मेरा ये शेर कैसा लगा ये निचे कॉमेंटमें जरुर लिखीयेगा। आपकी टीका-टिपण्णी का स्वागत ही होगा।</span>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-77042554650002307212009-07-09T16:18:00.006+05:302009-08-15T10:57:35.348+05:30मेरी पहली गजलआदाब दोस्तों,<br /><br />फिर एक बार हाजिर हुआ हुं आपके सामने मेरी एक गजल लेकर। ये गजल मेरी लिखी हुई सबसे पहली गजल हैं। ये गजल मैंने तब लिखी थी जब सन २००२ में गोध्रा में वो अमानुष हत्याकांड हुआ था जिसने इंसानियत पर कई सवाल खड़े कर दिए थे। उस घटना ने मेरे दिल पर काफी गहरा असर किया था। और उसी अवस्था में मैंने ये गजल लिखी थी। गजल का शीर्षक है "<strong><em>आतंक</em></strong>"।<br /><br />--- o --- o ---<br /><span style="font-size:0;"></span><br /><span style="color:#ffcc99;">आ ऐ दोस्त आज तू भी मेरे साथ कुछ आँसू बहा ले<br />मेरे आँसू शायद कम पड जाए ये आग बुझाने के लिये<br /><br />हर गली हर रस्ते पे अपनोंके ही खून के धब्बे हैं<br />हाथ किसके साफ हैं धरती के ये दाग मिटाने के लिये<br /><br />जिस्म छलनी, रुह बेचैन और आँखोंमें सैलाब भी हैं<br />कोई फरिश्ता भी नहीं हैं दिल का ये बोझ हटाने के लिये<br /><br />आज इन्सान ही इन्सान का दुश्मन बन बैठा हैं यहाँ<br />हाथ कोई बचा ही नहीं अब दुवा मे उठाने के लिये<br /><br />अब तो हमें ही कुछ कदम उठाना होगा ऐ दोस्तों<br />टुटे हुए इन दिलोंमें फिरसे वो हिम्मत जुटाने के लिये<br /></span><br />-योगेश<br /><span style="font-size:+0;"></span><br />--- o --- o ---<br /><span style="font-size:+0;"></span><br /><span style="font-size:+0;">दोस्तों इस गजल के बारे में आपकी क्या राय हैं ये जानने की चाहत रखता हूँ। आपकी टिका टिपण्णी मेरे जरुर काम आएगी। कृपया ये पेज क्लोज करने से पहले कुछ कॉमेंट जरुर छोडे</span>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1495499290308003023.post-38311432421400735782009-07-09T16:02:00.008+05:302009-08-15T10:56:46.689+05:30मेरा पहला शेर<p>आदाब दोस्तों!</p><p>इससे पहले के आप मेरी शायरी पढे, क्या आप नहीं जानना चाहेंगे की मेरी शायरी की शुरुआत कैसे हुई?<br />अच्छा ठिक हैं... बताता हूँ...</p><p>वैसे मुझे लिखने का शौक बचपन से ही रहा हैं. स्कूल में मुझे खत या निबंध लिखना बहोत अच्छा लगता था. मैं अपना होमवर्क खत्म करके अपने दोस्तों के लिए भी ये सब लिखा करता था. खैर, उस वक्त ये चाहत सिर्फ खत या निबंध लिखने तक ही सीमीत थी. कविताएँ या शेरोशायरी इन सबसे मैं काफी दूर ही था. सच कहूँ तो कुछ समझ में ही नही आता था. और बहोत बोरींग लगता था. लेकिन बाद में कॉलेज के जमाने में एक किस्सा हुआ और तबसे मेरी शायरी की शुरुआत हुई.</p><p>अरे रुकिये जनाब, इतनी जल्दी कोई अनुमान मत लगाईये. किसी फिल्मी कहानी की तरह मेरी शायरी की शुरुआत किसीके प्यार में डूबकर नहीं हुई. मेरी कहानी थोडी अलग हैं...</p><p>तो हुआ यूँ की एक बार हम लोग (यानी की मैं और मेरे दोस्त) कॉलेजमें लेक्चर के बाद एक क्लासरुम में बैठे थे. वहापर हमें बेंच के नीचे एक डायरी मिली. दीपा नाम के किसी लडकी की वो डायरी थी. उसमें कई सारे शेर लिखे हुए थे - कुछ खुद दीपा ने लिखे हुए और कुछ औरो के भी. तो वो डायरी लौटाने के लिये हमने उसे ढुँढने की बहोत कोशीश की. लेकिन वो डायरी किसकी थी इसका कोई पता नहीं चला. कुछ दिनों बाद हम सब दोस्तों ने मिलके उस डायरी में लिखे शेर साथ में बैठकर पढे और एक एक शेर को लेकर खूब हसीं-मजाक और मस्ती की. आम तौर पर कॉलेज के दिनों में जिस प्रकार एक दुसरे की खिंचाई की जाती हैं वो सबकुछ इस डायरी को लेकर हुआ.</p><p>बाद में कुछ दिन वो डायरी मैंने अपने पास रखी थी. वो शेर मैंने कई बार पढे और मुझे वो पसंद भी आने लगे. जब भी मैं वो शेर पढता था तो मुझे लगता था की क्यूँ न मैं भी कुछ लिखू? फिर बहोत कोशीश के बाद और इधर उधर से शब्दोंको किसी तरीके से साथ में बांधकर मैंने अपना पहला शेर लिखा. काफी मजेदार शेर था वो... एकदम फिल्मी स्टाईल... पढना चाहोगे? तो ये लीजिये...</p><p><span style="color:#ffcc99;">सलाम आपकी खिदमत में करता हूँ पेश<br />भूलना मत कभी, मेरा नाम हैं योगेश</span></p><p>हैं ना एकदम मजेदार शेर? तो ये शेर मैंने अपने दोस्तों को सुनाया और उन्होने भी इसे खूब सराहा. फिर तो कुछ पुछिये ही मत... मैं बस लिखता ही गया. शुरु शुरु में लिखे हुए कई शेर बहोतही बेमानी थे. आज जब मैं उन्हें फिरसे पढता हूँ तब ये समझ में आता हैं और हँसी भी आती हैं. लेकिन आज जब मैं ये सोचता हूँ की अगर उस वक्त मेरे दोस्तोंने मेरी कोशीश को सराहा न होता तो शायद मैं आगे कभी न लिखता. मैं अपने उन सभी दोस्तों का तहे-दिल से शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने मुझे लिखते रहने की प्रेरणा दी.</p><p>आगे चलके धीरे धीरे मेरी शायरी में थोडा वजन भी आ गया. लेकिन आज भी मेरे शेर या गझलें पुरी तरह व्याकरण की कसौटी पर खरे उतर सकेंगे ये बात मैं यकीन के साथ नहीं कह सकता. उस मोड तक पहुँचने में शायद मुझे अभी कुछ देर हैं. फिर भी मैं यही कहना चाहूंगा.</p><p><span style="color:#ffcc99;">यूँ ही बहती हैं ये जिंदगी, यूँ ही बहती रहेगी<br />मेरी शायरी इसके किस्से यूँ ही कहती रहेगी</span></p><a href="file:///D:/Web/writings.htm"></a><br />--- o --- o ---<br /><br />दोस्तों मेरी शायरी आपने पढ़ी। इसके बारे में आपकी क्या राय हैं ये जानने की चाहत रखता हूँ। आपकी टिका टिपण्णी मेरे जरुर काम आएगी। कृपया ये पेज क्लोज करने से पहले कुछ कॉमेंट जरुर छोडे।Unknownnoreply@blogger.com1