दोस्तो,
प्यार में इंतजार का मजा कुछ और ही होता हैं। खास करके जब बहोत ज्यादा इंतजार के बाद मुलाकात होती हैं तब वो मुलाकात भी काफी रंग लाती है। कभी कभी तो ऐसा भी होता हैं की इंतजार ही इंतजार में आशिक अपनी मेह्बूबा से अपने ख्वाबों में ही मुलाकात कर बैठता हैं। लिजीये आपके सामने पेश कर रहा हूं एक ऐसा ही शेर जिसमें शायर उसकी मेहबूबा से अपने ख्वाबों में होती हुई मुलाकातों के सिलसिलों के बारे में, अपने दोस्तों से जिक्र कर रहा हैं। अर्ज किया हैं -
वो मिलती हैं तसव्वूर में इस तरह
जैसे रात में फूलों पे गिरती हैं शबनम
जैसे शमा से मिलते हैं मासूम परवाने
जैसे दिल की साज पे छेडे कोई सरगम
-योगेश 'अर्श'
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