26 August, 2009

ऐ काश के दिल हमारा पत्थर होता

ऐ काश के दिल हमारा पत्थर होता
किसी बात का ना इसपे असर होता

जी लेते एक जिंदा लाश की तर्हा फिर
जिंदगी का खौफ, ना मौत का डर होता

हँसकर पी लेते ये जहर का प्याला
पता तेरा इरादा हमें अगर होता

क़ातिल का पता चल जाता दुनिया को
जो लाश के पास मिला वो खंजर होता

हमसफर होता जहाँ में कोई मेरा
फिर आसान कुछ तो ये सफर होता

पा लेता प्यार इस दुनिया में किसीका
ना होता दुनिया में ’अर्श’ मगर होता


-योगेश 'अर्श'

3 comments:

  1. बढिया, शुरू की चार लाइने बहुत सुन्दर है, अगर बुरा न माने तो 'तर्हा' को तरहा तथा 'पता' के स्थान पर मालूम शब्द प्रयुक्त कर दे तो रचना और जानदार लगेगी !

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  2. तारीफ के लिये बहोत बहोत शुक्रिया।

    आपका सुझाव बहोत जायज हैं। लेकिन ऐसा करने पर ये दोनो शेर वजन से बाहर हो जाते हैं। इसलिये मैने उन्हे ऐसे ही रखना पसंद किया!

    -योगेश ’अर्श’

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  3. ऐ काश के दिल हमारा पत्थर होता
    किसी बात का ना इसपे असर होता

    जी लेते एक जिंदा लाश की तर्हा फिर
    जिंदगी का खौफ, ना मौत का डर होता


    सुंदर!

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