15 July, 2009

एक गज़ल हैं जैसे जिंदगी मेरी

दोस्तों,

आज जो शेर मैं आपके सामने पेश करने जा रहा हूँ वो मेरे अपने सबसे पसंदीदा शेरों में से एक हैं। जरा गौर फरमाईएगा...

एक गज़ल हैं जैसे जिंदगी मेरी
हर ग़म जैसे एक शेर
क्यूं ना खुबसूरत हो ये गज़ल
हर शेर में जीक्र तेरा जो हैं

इस शेर में शायर की कल्पना ये हैं की उसकी जो जिंदगी हैं उसमे कई सारे ग़म हैं। लेकिन उसे इन ग़मों के होने से जरा भी शिकायत नहीं हैं। उल्टा उसे इन ग़मों से प्यार ही हैं। और उसकी वजह ये हैं की उसका हर एक ग़म उस की मेहबूबा की ही देन हैं। उसका हर एक ग़म उसकी मेहबूबासे ही जुडा हुआ हैं। शायर की कल्पना की नजाकत देखिये। उसकी मेहबूबा ने उसका दिल तोड़ दिया है। वो अभी ग़मज़दा है। फिर भी उसे अपनी मेहबूबा से कोई शिकायत नहीं हैं। उसकी चाहत की ये हद हैं की उसकी मेहबूबा के दिए हुए ग़म से भी उसे प्यार ही हैं.

-योगेश 'अर्श'

No comments:

Post a Comment